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गजनवी और गोरी

November 18, 2018

۞ सामानी राज्य के प्रान्तीय शासकों में अलप्तगीन नामक तुर्क गुलाम ने गजनी वंश की स्थापना की। ۞ 986 ई. में अलप्तगीन के दामाद तथा उसके उत्तराधिकारी सुबुक्तगीन ने हन्दूशाही शासक जयपाल को पराजित किया। ۞ 998 ई. में महमूद गजनवी गजनी का शासक बना। ۞ महमूद ने स्वयं को प्राचीन दंतकथाओं में चर्चित बादशाह अफराशियाब के वंशज होने का दावा किया। ۞ शाहनामा के लेखक फिरदौसी महमूद गजनवी के दरबारी कवि थे। ۞ महमूद गजनवी ने भारत पर 17 बार आक्रमण किया। ۞ पंजाब पर आधिपत्य जमाकर उसने नगरकोट तािा थानेश्वर पर आक्रमण किया। ۞ 1028 में कन्नौज पर तथा 1025 में गुजरात पर आक्रमण किया गया। ۞ उसने अपने साम्राज्य में इन क्षेत्रों को मिलाने का कोई प्रयास नहीं किया। ۞ सोमनाथ मन्दिर की लूट भारत में पंजाब के बाहर उसका अंतिम अभियान था। ۞ 1030 में गजनी में महमूद की मृत्यु हो गयी। ۞ महमूद के गुजरात आक्रमण के समय गुजरात का शासक भीमदेव प् था। ۞ महमूद गजनवी के साथ तहकीक-एक-हिन्द के लेखक अलबरूनी तथा इतिहासकार अरबी तथा बैहाकी भी भारत आये थे। महमूद गजनवी के आक्रमण 1000 ई. सीमा राज्य पर 1000 ई. हिन्दूशाही शासक जयपाल 1006 ई. मुल्तान 1008 ई. हिन्दूशाही शासक आनंदपाल 1009 ई. नगरकोट 1014 ई. थानेश्वर 1018 ई. कन्नौज 1019 ई. कालिंजर 1024.25 ई. सोमनाथ (गुजरातद्ध 17वां आक्रमण जाटों के विरुद्ध मुहम्मद गोरी के आक्रमण 1175 मुल्तान 1182 सिन्ध 1179 पेशावर 1185 पंजाब 1186 लाहौर 1191 तराईन का प्रथम युद्ध 1192 तराईन का द्वितीय युद्ध 1194 चंदावर का युद्ध 1204.05 बख्तियार खलजी द्वारा बंगाल विजय 1205 खोखरों की पराजय ۞ महमूद के बाद सेल्जुक आये जिसे साम्राज्य में सीरिया, ईरान तथा मावराउन्नहर शामिल थे। इस साम्राज्य ने खुरासान पर आधिपत्य के लिए गजनवियों से संघर्ष किया। ۞ एक प्रसि) युद्धमें महमूद का पुत्रा मसूद पराजित हुआ तथा उसने समारोह में शरण ली। ۞ मुहम्मद गोरी ने भारत में तुर्क राज्य की स्थापना की। ۞ तत्कालीन सिंध की राजधानी अरोर थी। ۞ गोरी का प्रथम आक्रमण 1175 में मुल्तान के विरु) हआ। ۞ 1178 में गुजरात के विरु) अभियान किया गया परन्तु चालुक्य शासक मूलराज प्प् से गोरी पराजित हुआ। ۞ 1179.89 में पंजाब पर आक्रमण किया। 1179 में पेशावर तथा 1185 में सियालकोट को जीता। ۞ 1191 में तराईन के प्रथम युद्धमें गोरी पृथ्वीराज चैहान से पराजित हुआ लेकिन 1192 में हुए द्वितीय युद्धमें चैहान पराजित हुआ। ۞ 1194 के चन्दावर युद्धमें जयचंद गोरी से पराजित हुआ। ۞ अलप्तगीन भारतीय-प्रदेश को जीतने वाला प्रथम तुर्क था।
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मूर्तिकला एवं चित्रकला

November 05, 2018

۞ गुप्तकालीन मूर्तियों में अधिकतर मूर्तियां देवी, देवता, बु) और तीर्थंकर की हैं गुप्तकालीन धातु मूर्तिकला में नालन्दा तथा सुल्तानगंज की बु) की मूर्ति उल्लेखनीय है। गुप्तकाल की मूर्तियों में कुषाणकालीन नग्नता एवं कामुकता का पूर्णतः लोप हो गया था। ۞ गुप्तकाल में चित्रकला के क्षेत्रा में अभूतपूर्व प्रगति हुई। इस काल की चित्रकला के अवशेष अजन्ता तथा बाघ गुफाओं से प्राप्त होते हैं। ۞ अजन्ता गुफा की चित्रकारी को सर्वप्रथम 1919 में सर जेम्स अलेक्जेण्डर ने देखा। अजन्ता की गुफायें बौ) धर्म के महायान शाखा से संबंधित है। कुल 29 गुफाओं में वर्तमान में केवल 6 ही शेष है जिसमें गुफा संख्या 16 तथा 17 को गुप्तकालीन माना जाता है। गुफा संख्या 16 में श्मरणासन्न राजकुमारीश् का चित्र प्रशंसनीय है। गुफा संख्या 17 के चित्र जिसे श्चित्राशालाश् कहा गया है। इसमें बु) के जन्म, जीवन, महाभिनिष्क्रमण एवं महापरिनिर्वाण की घटनाओं से सम्बन्धित चित्र उकेरे गये हैं। ۞ बाघ की गुफायें ग्वालियर के समीप विंध्यपर्वत को काट कर बनाई गयी थी। 1818 ई. में डैजरफील्ड ने इन गुफाओं को खोजा, जहां से 9 गुफायें मिली है। बाघ गुफा के चित्र आम जन-जीवन से संबंधित है।
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गुपत की उत्पत्ति

October 29, 2018

गुपत की उत्पत्ति ۞ गुप्त सम्भवतः कुषाणों के सामन्त थे और थोड़े ही दिनों में उनके उत्तराधिकारी बन बैठे। वे अपनी सत्ता के केन्द्र प्रयाग को बनाकर पड़ोस के इलाकों में फैलते गये। गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य मध्य गंगा मैदान, प्रयाग, साकेत और मगध पर स्थापित किया। ۞ काध्शी प्रसाद जायसवाल के अनुसार गुप् सम्राट जाट और मूलतः पंजाब के निवासी थे। गौरी शंकर ओझा इन्हें क्षत्रिय तथा राय चैधरी ने ब्राह्मण माना। स्मृतियों में गुप्तों को वैश्य कहा गया है। ۞ गुप्तकालीन अभिलेखों के आधार श्श्री गुप्तश् गुप्तों के आदिराजा थे। इन्होंने 240 ई. में से 280 ई. तक शासन किया तथा श्महाराजश् की उपाधि धारण की। श्रीगुप्त के पश्चात उसका पुत्रा घटोत्कच शासक हुआ जिसने 280 ई. से 319 ई. तक शासन किया। चन्द्रगुप्त प्रथम (319.335 ई.) रू ۞ चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्तवंश का प्रथम प्रसि) राजा हुआ। इसने श्महाराजाधिराजश् की उपाधि धारण कीं चन्द्रगुप्त ने वैशाली के प्राचीन लिच्छवि वंश की राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया। इन्होंने अपने राज्यारोहण की स्मृति में 319.320 ई. में गुप्त संवत आरम्भ किया। समुद्रगुप्त (335.375 ई.) रू ۞ चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्रा समुद्रगुप्त शासक बना। समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशास्ति लेख में समुद्रगुप्त के शासन पर खुदा है जिस पर अशोक का स्तम्भ काल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकाीर मिलती है। यह अभिलेख उसी स्तम्भ लेख है। प्रयाग स्तम्भ लेख के सातवें श्लोक से उसकी सामरिक विजयों का वण्रन मिलता है। समुद्रगुप्त द्वारा विजित प्रदेशों को पांच समूहों में बांटा गया। प्रथम समूह में गंगा-यमुना दोआब के वे राजा हैं जिन्हें हराकर उनका राज्य साम्राज्य में मिला लिया गया। द्वितीय समूह में पूर्वी हिमालय के राज्यों और कुछ सीमावर्ती राज्यों के शासक हैं जैो-ेनपाल, असम, बंगाल, पंजाब के कुछ पूर्वी गणराज्य आदि। इन्हें उसने अपनी शक्ति का अहसास करा दिया। तृतीय समूह में आटविक राज्य हैजो विन्ध्य क्षेत्रा में पड़ते हैं। चतुर्थ समूह में पूर्वी दक्कन और दक्षिण भारत के 12 शासक थे जिन्हें हराकर छोड़ दिया गया। पंचम समूह में शकों और कुषाणों के नाम है। ۞ समुद्रगुप्त को श्भारत का नेपोलियनश् कहा जाता है। ۞ प्रयाग प्रशस्ति संस्कृत के चम्पू शैली (प्रारम्भिक पंक्ति पद्यात्मक तथा बाद वाली गद्यात्मक) में है। इसमें समुद्रगुप्त के अतिरिक्त अशोक, जहांगीर तथा बीरबल का उल्लेख है। ۞ समुद्रगुप्त द्वारा जारी किये गये सिक्के में कुछ पर श्अश्वमेध पराक्रमश् खुदा है तो कुछ पर सम्राट को वीणा वादन करते हुए दिखाया गया है। ۞ चीनी स्रोत के अनुसार श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त से गया में बौद्धमठ बनाने की अनुमति मांगी। समुद्रगुप्त अपने को श्लिच्छवि दौहितश् कहकर गर्व का अनुभव करता था। चन्द्रगुप्त (380.412 ई.) रू ۞ समुद्र गुप्त के पश्चात् उसका पुत्रा चन्द्रगुप्त द्वितीय राजा बना। उसका दूसरा नाम देवराज तथा देवगुप्त भी था। उसने अपने साम्राज्य को विवाह संबंधों और विजयों द्वारा बढ़ाया। उसने नागवंश की राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह किया। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्राी प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया। रुद्रसेन की मृत्यु के बाद वहां के शासन के निमित्त उसने उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर श्विक्रमादित्यश् की उपाधि धारण की। शक के विरु) विजय के लक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के जारी किये। दिल्ली के महरौली लौह स्तम्भ अभिलेख के राजा चन्द्र का साम्य चन्द्रगुप्त द्वितीय के साथ मिलाया जाता है। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में कालिदास और अमरसिंह जैसे अनेक विद्वान थे। फाहियान (399.414 ई.) इसी के शासनकाल में भारत आया था। कुमारगुप्त (415.454 ई.) रू ۞ ह्नेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम श्शक्रादित्यश् बताया है। इसने बड़ी संख्या में मुद्रायें जारी करवायी। इसके द्वारा जारी की गयी मुद्राओं का एग बड़ा भंडार (भरतपुर) में मिला जिसमें चांदी की मयूरशैली की मुद्राएं सर्वोत्कृष्ट थीं। ۞ स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है कि पुस्यभूतियों का आक्रमण कुमारगुप्त के समय हुआ। ۞ कुमारगुप्त ने एक अश्वमेध यज्ञ किया था। ۞ नालन्दा विश्वविद्यालय का संस्थापक कुमारगुप्त था। स्कंदगुत्प (455.468 ई.) रू ۞ राज्यारोहण के तुरन्त बाद इसे हुणों के आक्रमण का सामाना करना पड़ा। स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख तथा जूनागढ़ शिलालेख में हुणों पर स्कंदगुप्त की विजयों का उल्लेख है।
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संगम का आयोजन

October 27, 2018

प्रथम संगम: स्थान मदुरा अध्यक्ष ऋषि अगस्त्य संरक्षक 89 पांड्य शासक अवधि 4ए400 वर्ष सदस्य 549 प्रस्तुत रचनायें 4499 मानक ग्रंथ अक्कतियम, परिपदल, मुदुनरै उपलब्ध ग्रन्थ कोई नहीं द्वितीय संगम: स्थान कपाटपुरम् अध्यक्ष तोल्लकापिप्यर संरक्षक 59 पांड्य शासक अवधि 3ए700 वर्ष सदस्य 49 प्रस्तुत रचनायें 3ए700 मानक ग्रंथ तोल्लकाप्पियम, मापुरानम्, भूतपुरोनम, कलि, कुरूक, वेन्दालि, व्यालमलय उपलब्ध ग्रन्थ तोल्लकाप्पियर कृत श्तोल्लकाप्पियमश् जो तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण है तृतीय संगम: स्थान मदुरा अध्यक्ष नक्कीरर संरक्षक 49 पांड्य शासक अवधि 1850 वर्ष सदस्य 49 प्रस्तुत रचनायें 449 मानक ग्रंथ पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई, पादिने नकील कनवकु, नेडुण्थोकै, कुरून्थोकै, परिपादल, वरि, वेरिसै, एन्कुरून्नूरू उपलब्ध ग्रन्थ पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई, पादिने नकील कनवकु तथा अन्य समस् उपलब्ध तमिल ग्रंथ। ۞ चोलों की राजधानी पहले उरैयूर तथा बाद में पुहार (कावेरी पट्टनम) थी। ۞ चोलों का राजकीय चिन्ह बाघ था। ۞ करिकल चोलों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था जिसका अर्थ होता है श्जले हुए पैर वाला व्यक्तिश् इसने पुहार की स्थापना की तथा कावेरी नदी पर लम्बा बांध बनाया। वह सात स्वरों का ज्ञाता था। ۞ करिकल के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी जिसका उपयोग उसने श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने के लिए किया। पांड्य: ۞ पांड्य राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनि के अष्टध्यायी में मिलता है। मेगास्थनीज ने भी कहा है कि इस राज्य पर एक औरत का शासन था और यह राज्य मोतियों के लिए प्रसि) था। ۞ पांड्य राज्य की राजधानी मदुरा थी तथा इसका राजचिन्ह मछली (मत्स्य) था। ۞ पांड्य राज्य मदुरर्ह, रामनाथपुरम, तिरूनेलवेलि, तिरूचिरापल्ली एवं ट्रावनकोर तक विस्तृत था। ۞ नेडियोन पांड्य राजवंश का प्रथम शासक था। नेडियोन का शाब्दिक अर्थ श्लम्बा आदमीश् होता है। इसने समुद्र की पूजा प्रारम्भ कराई थी। ۞ नेडियोन के पश्चात मुदुकुडुमी शासक बना। इसने श्पालशालेश् (यज्ञशालाएं बनवाने वाला) की उपाधि धारण की। ۞ पांड्य राजा ने रोमन सम्राट आगस्टस के दरबार में अपने राजदूत भेजे थे। शासन व्यवस्था: ۞ संगमकालीन शासन व्यवस्था में वंशानुगत राजतंत्रा की प्रथा प्रचलित थी। राजा प्रशासन का मुख्य केन्द्र बिन्दु होता था। राजा का आचरण अनुकरणीय माना जाता था। उसके लिए कला, साहित्य तथा धर्म का संरक्षक होना अपेक्षित गुण था। उसकी निरंकुशता र विवेकपूर्ण मंत्रियों, कवियों अथवा मित्रों का अवसर आने पर हल्का अंकुश रहता था। ۞ राजा अपनी सभा श्नालवैश् में प्रजा की कठिनाइयों पर विचार करता था। ۞ श्मनरमश् सर्वोच्च न्यायालय होता था जिसका सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था। ۞ राजा की मदद करने के लिए विशाल अधिकारी वर्ग था जिनमे अमैच्चार (मंत्रीद्धए पुरोहित (पुरोहितारद्धए सेनापत्तियार (सेनानायकद्धए दूतार (राजदूत या दूत) तथा और्रार (गुप्तचर) प्रमुख थे। ۞ राजा के आवास पर सशस्त्रा महिलाएं रक्षक के रूप में रहती थीं। ۞ सेना के कप्तान की उपाधि श्एनाडीश् थी। युद्धमें मृत सैनिकों की पत्थर की मूर्तियां बनाई जाती थी। ۞ प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य मंडलम, नाडु तथा उर में विभाजित था। ۞ बड़े गांव को श्पेरूरश् तथा छोटे गांव को श्सिरूरश् कहा जाता था। आर्थिक स्थिति: ۞ तमिल प्रदेश अपनी उर्वरता के लिए प्रसि) था। कावेरी डेल्टा बहुत उपजाऊ था। कृषि आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार थी तथा यह राजकीय आय का मुख्य स्रोत था। यहां धान, रागी तथा गन्ने की खेती होती थी। इसके अतिरिक्त अन्य अनाज, फल, गोलमिर्च और हल्दी का पैदावार होता था। ۞ श्कुरिंजीश् पर्वत क्षेत्रा था तथा श्मूलैयश् जंगल को कहा जाता था। श्पालैश् निर्जन स्थल तथा कृषयोग्य भूमि को श्मरुदमश् का जाता था। समुद्रतट को श्नेयत्तलश् कहा जाता था। ۞ भूमि की पैमाइश के लिए श्माश् और श्वेलिश् पैमानो का प्रयोग होता था। ۞ राज्य की आय के मुख्य साधन कृषि तथा व्यापार पर लगाये जाने वाले कर थे। ۞ श्करईश् कृषिकर था तथा श्हरईश् लूट के माल को कहा जाता था। श्उल्गुश् सीमाशुल्क था। ۞ धनी किसानों को श्वेल्लालश् कहा जाता था तथा श्कडैसियरश् कृषि कार्य करने वाला निम्नतम वर्ग था। ۞ श्अवनमश् संगम काल में बाजार को कहते थे तथा व्यापारी वर्ग को श्वेनिगरश् कहा गया है। ۞ संगमकाल के व्यावसायिक वर्ग में पुलैयन (रस्सी बनाने वालाद्धए एनियर (कशिकारीद्धए मछुआरे, कुम्हार, लुहार, स्वर्णकार तथा बढ़ई प्रमुख थे। श्मलवरश् तमिल प्रदेश की उत्तरी सीमा पर बसने वाले लोग थे जिनका पेशा डाका डालना था। ۞ श्अरिकामेडुश् एक प्रसि) व्यापारिक केन्द्र था जहां से वस्तुएं भारत के विभिन्न भागों में भेजी जाती थीं। ۞ तमिल प्रदेश में गोलमिर्च का अत्यधिक उत्पादन होता था जिसे श्यवनप्रियश् कहा गया है। ۞ एरिथ्रियन सी में नौरा, तोंडी, मुशिरी और नेसिल्संडा पश्चिमी तट के प्रमुख बंदरगाहर बताए गये हैं। ۞ पुहार चोल का, शालियूर पांड्य का तथा बंदर चेर राज्य का महत्वपूर्ण बंदरगाह था। ۞ उरैयूर सूती कपड़ों के व्यापार के लिए प्रसि) था। ۞ निर्यात की मुख्य वस्तु काली मिर्च, हाथी दांत, मोती, मलमल, रेशमी कपड़े, कीमती रत्न तथा कीमती पत्थर थ तथा आयात की मुख्य वसतु कांच, प्रवाल, मूंगा, शराब, सोना, सिक्का आदि था। ۞ संगमकाल में सर्वाधिक व्यापार रोमन राज्य के साथ था। रोमन सम्राट आॅगस्टस के सोने के सिक्के मुजीरिस, पुहार एवं अरिकामेडु से मिले हैं। मूजीरिस में आॅगस्टस का मंदिर रोमनों द्वारा बनवाया गया था। सामाजिक स्थिति: ۞ संगमकालीन सामाजिक स्थिति की प्रमुख विशेषता उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की स्थानीय संस्कृति के बीच समन्वय हैं समाज अनेक वर्गों में विभक्त था। जाति विभाजन और जनजातीय व्यवस्था साथ-साथ विद्यमान था। ۞ शासकों की एक अलग जाति होती थी जिसे श्अरसरश् कहा जाता था। ۞ ब्राह्मणों को पुरोहितों तथा कवियों के रूप में राज्य से संरक्षण मिलता था तथा इस काल में वे मांस एवं मदिरा का सेवन करने लगे थे। ۞ वेल्लाल जो धनी किसानों का वर्ग था का काफी महत्व था राजघरानों से उनका वैवाहिक संबंध होता था तथा वे राज-कर्मचारी के रूप में नियुक्त किये जाते थे। ۞ तमिल देशों में प्रचलित स्त्राी तथा पुरुष के सहज प्रणय तथा उससे संबंधित अभिव्यक्तियों को श्पांच तिणैश् कहा जाता था। सती प्रथा का प्रचलन था। ۞ श्परत्तियरश् व श्कणिगैचरश् का संगमकालीन समाज में गणिकाओं एवं नर्तकियों के रूप में उल्लेख मिलता है।
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अशोककालीन प्रान्त

October 23, 2018

प्रान्त राजधानी उत्तरापथ तक्षशिला अवन्ति राष्ट्र उज्जयिनी कलिंग प्रान्त तोसली दक्षिणापथ सुवर्णगिरी प्राशी या प्राची पाटलिपुत्रा ۞ कौटिल्य ने सप्तांग सिद्धान्त या राज्य के सात अंग बतलाये हैं-राजा, अमान्य, तनपद, दुर्ग, कोष, सेना और मित्रा। ۞ मौर्य पितृसत्तात्मक राजत्व के समर्थक थे। अशोक अपने वृहत शिलालेख प्ट में कहता है। श्सभी मनुष्य मेरी संतान हैश्। राजा प्रजा के कल्याण और हित को काफी महत्व देते थे। राजा की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद होती थी जो राजा को प्रशासन से संबंधित सलाह मशविरा देती थी लेकिन राजा मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य नहीं था। अंतिम निर्णय राजा का ही होता था। ۞ अमात्य प्रशासनिक कार्य में सम्मिलित विशाल प्रशासनिक वर्ग को कहा जाता था। ۞ अर्थशास्त्रा में शीर्षस्थ अधिकारी के रूप में 18 श्तीर्थश् का उल्लेख है, जिन्हें 48 हजार पण वार्षिक वेतन मिलता था- 1ण् पुरोहित मुख्य पुजारी 2ण् मंत्रिण मुख्य मंत्री 3ण् सेनापति सेना का सर्वोच्च अधिकारी 4ण् युवराज राजपुत्रा 5ण् दौवारिक राजमहलों की देख-रेख करने वाला 6ण् दंडपाल पुलिस प्रमुख 7ण् दुर्गपाल देश के भीतर दुर्गों का रक्षक 8ण् अंतपाल बाहृय सुरक्षा का प्रमुख 9ण् आंतेवाशिक हरम का प्रमुख 10ण् प्रशास्ता राजाज्ञाएं लिपिब) करने वाला 11ण् नायक सेना का प्रमुख संचालक 12ण् व्यावहारिक मुख्य न्यायाधीश (धर्मस्थीय न्यायालय काद्ध 13ण् प्रदेष्टा फौजदारी न्यायालयों का न्यायाधीश 14ण् नागरक नगर का शासनाधिकारी 15ण् समाहर्ता कर संग्रहकर्ता 16ण् सन्निधाता कोषाध्यक्ष 17ण् कर्मान्तिक खान का प्रमुख अधिकारी 18ण् मंत्रिपरिषाध्यक्ष परिषद का अध्यक्ष राजस्व प्रशासन: ۞ राजस्व एकत्रा करना, आय-व्यय का ब्यौरा रखना तथा वार्षिक बजट तैयार करना समाहर्ता के कार्य थे। वह अक्षपटलाध्यक्ष (महालेखापाल) के कार्यों के निरीक्षण द्वारा आय तथा व्यय पर नियंत्राण रखता था। ۞ पिंडकर एक प्रकार का रिवाजी कर था जिसका निर्धारण सामूहिक रूप से होता था। गांवों द्वारा उत्पाद के रूप में देय कर था। ۞ हिरण्य कर एक प्रकार का नगर कर था। ۞ सेना भक्तम सेना कर था जिस क्षेत्रा से सेना गुजरती थी वहां के निवासियों पर लगाया जाता था। ۞ प्रणय आपातकालीन कर था। ۞ विष्टि बेगार के रूप में लिया जाने वाला कर था। ۞ उद्रंग सिंचाई कर था। सैन्य विभाग: ۞ मौर्य शासक के पास एक विशाल और सुसंगठित सेना थी। कौटिल्य ने विभिन्न प्रकार के सैनिकों का उल्लेख किया है जैसे पारम्परिक सैनिक (मौलद्धए भाड़े के सैनिक (भृतकद्धए लंगली कबीलों के सैनिक (आटविक) तथा मित्राबल। ۞ मेगास्थनीज के अनुसार सैन्य विभाग 30 सदस्यीय एक सर्वोच्च परिषद के नियंत्राण में कार्य करती थी जो 6 भागों में विभाजित था। ۞ सेनापति सैन्य विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी होता था तथा नयक युद्धक्षेत्रा में सेना का नेतृत्व करने वाला होता था। गुप्तचर विभाग: ۞ मौर्य साम्राज्य के अंतर्गत् गुप्तचर विभाग सुसंगठित था। गुप्तचरों के द्वारा राजा एक ओर राजकीय अधिकारियों पर नियंत्राण रखता था और दूसरी ओर जनता के विचारों, शिकायतों तथा भावनाओं की जानकारी प्राप्त करता था यह विभाग श्महातात्यापसर्पश् के अधीन काम करता था। ۞ गुढ़पुरुष अर्थशास्त्रा में वर्णित गुप्तचर थे। ۞ दो प्रकार के गुप्तचरों का उल्लेख है- संस्था: ऐसे गुप्तचर थे जो एक ही स्थान पर संगठित होकर गुप्तचरी करते थे। संचार: ऐसे गुप्तचर जो एक स्थान से दूसरे स्थान पर घूमते हुए गुप्तचरी करते थे। न्याय व्यवस्था: ۞ पाटलिपुत्रा में स्थित केन्द्रीय न्यायालय सर्वोच्च न्यायालय था। सम्राट सर्वोच्च न्यायाधीश होता था। ۞ न्यायालय दो भागों में विभाजित था- धर्मस्थीय: यह दीवानी अदालत थी। न्याय निर्णय तीन धर्मस्थ या व्यावहारिक तथा तीन अमात्य करते थे। इसमें पेशे होने वाली चोरी, डाके व लूट के मामलों को साहस कहा जाता था। कंटक-शोधन: एक तरह से फौजदारी अदालत थी। राज्य तथा व्यक्ति के बीच विवाद न्याय का विषय था। न्याय तीन प्रदेष्टि तथा तीन अमात्य मिलकर करते थे। ۞ मुख्य स्थानों पर पुलिस मुख्यालय की व्यवस्था की गयी थी। 800 गांवों के लिए स्थानीय मुख्यालय, 400 गांवों के लिए द्रोणमुख, 200 गांवों के लिए खार्वटिक तथा 10 गांवों के लिए एक संग्रहण मुखालय था।
अशोककालीन प्रान्त अशोककालीन प्रान्त Reviewed by asdfasdf on October 23, 2018 Rating: 5

भरतपुर का जाट वंश

September 26, 2018
भरतपुर के जाट वंश का इतिहास
👉भरतपुर का जाट वंश-
➯राजस्थान के पूर्वी भाग भरतपुर, धौलपुरस डींग आदि क्षेत्रों पर जाट वंश का शासन था।
➯राम के भाई भरत के नाम पर ही इस राजवंश का नाम भरतपुर राजवंश पड़ा है।

👉गोकुल जाट-
➯1669 ई. में मथुरा क्षेत्र के जाटों द्वारा स्थानीय जमीदार गोकुल जाट के नेतृत्व में औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रोह किया गया था।
➯औरंगजेब के खिलाफ यह पहला हिन्दु विद्रोह था।
➯10 मई 1666 को गोकुल जाट (जाटों) व औरंगजेब की सेना में तिलपत का युद्ध हुआ था।
➯तिलपत के युद्ध में मुगल फौजदार हसन अली खां ने गोकुल जाट को पराजित कर मार डाला था।

👉राजाराम जाट-
➯गोकुल जाट के बाद राजाराम जाट ने जाट विद्रोह का नेतृत्व किया।
➯1685 ई. में राजाराम के नेतृत्व में दूसरा जाट विद्रोह हुआ था।
➯सिकन्दरा (आगरा) में स्थित अकबर के मकबरे को लूटा तथा मकबरे में अकबर की हड्डियों को निकाल कर हिन्दु विधियों से जला दिया था।
➯1688 ई. में औरंगजेब के पौत्र तथा आमेर के शासक बिसन सिंह ने राजाराम को पराजित किया।

👉चूडामन जाट-
➯1688 ई. में राजाराम की मृत्यु के बाद उनके भतीजे चूडामन या चूड़ामन ने जाट नेतृत्व की बागडोर संभाली।
➯चूडामन जाट ने थून में किला बनाकर अपना राज्य स्थापित किया।

👉बदन सिंह जाट-
➯बदन सिंह जाट ने आगरा व मथुरा पर अधिकार करके भरतपुर के नये राजघराने की नींव डाली।
➯बदनसिंह जाट ने डीग, कुम्हेर, बैर व भरतपुर में नये दुर्ग बनवाये।
➯बदनसिंह जाट के पुत्र सूरजमल जाट ने सोधर के निकट दुर्ग का निर्माण करवाया जो भरतपुर या लोहगढ़ या अजयगढ़ दुर्ग के नाम से प्रसिद्ध हुआ।
➯बदनसिंह जाट ने भरतपुर को अपनी राजधानी बनाया।
➯वृंदावन में एक मंदिर बनवाया तथा डीग के किले में कुछ महलों का निर्माण करवाया।
➯बदनसिंह जाट को जयपुर नरेश सवाई जयसिंह ने ब्रजराज की उपाधि प्रदान कर डीग परगने की जागीर दी।

👉महाराजा सूरजमल जाट (1756-1763 ई.)-
➯महाराजा सूरजमल जाट के राज्य में आगरा, मथुरा, मेरठ, अलीगढ़ आदि सम्मिलित थे।
➯अपनी बुद्धिमता व राजनीतिक कुशलता के कारण महाराजा सूरजमल जाट को जाट जाति का प्लेटो कहा जाता है।
➯महाराजा सूरजमल जाट ने 1754 ई. में मराठा नेता होल्कर के कुम्हेर आक्रमण को विफल किया।
➯महाराजा सूरजमल जाट ने 12 जून 1761 को आगरा के किले पर अधिकार किया।
➯महाराजा सूरजमल जाट ने डीग के जलमहलों का निर्माण करवाया।
➯जलमहलों में गोपाल भवन, नंद भवन, केशव भवन, सावन भादौ भवन आदि प्रसिद्ध थे।
➯1763 ई. में नजीब खाँ रोहिला के साथ युद्ध करते हुए महाराजा सूरजमल जाट की मृत्यु हो गई।
➯महाराजा सूरजमल जाट की पत्नी किशोरी देवी अपनी बुद्धिमता के लिए प्रसिद्ध थी।

👉जवाहर सिंह-
➯महाराजा सूरजमल के बाद उसका पुत्र जवाहर सिंह भरतपुर का शासक बना था।
➯जवाहर सिंह ने दिल्ली पर आक्रमण किया तथा विजय के उपलक्ष में जवाहर सिंह जाट ने दिल्ली के लाल किले के दरवाजे को भरतपुर के किले में लगवाया था।

👉रणजीत सिंह-
➯29 सितम्बर 1803 ई. में अंग्रेजी सरकार के प्रतिनिधि लाॅर्ड लेक डाउन वेल ने रणजीत सिंह के साथ संधि की।

👉बृजेन्द्र सिंह-
➯आजादी के समय भरतपुर का शासक बृजेन्द्र सिंह जाट था।
➯स्वतंत्रता के बाद भरतपुर मत्स्य संघ में विलय हुआ


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भरतपुर का जाट वंश भरतपुर का जाट वंश Reviewed by asdfasdf on September 26, 2018 Rating: 5

माही नदी

September 21, 2018
माही नदी
👉माही नदी का उद्गम स्थल-
➯मध्य प्रदेश के धार जिले में सरदारपुरा के मिन्डा गांव के निकट विंध्याचल पर्वत श्रेणी में स्थित मेहद झील से माही नदी निकलती है।

👉भारत में माही नदी का बहाव क्षेत्र या प्रवाह क्षेत्र-
➯भारत में माही नदी क्रमशः मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा गुजरात तीन राज्यों में बहती है।

👉राजस्थान में माही नदी का बहाव क्षेत्र-
➯राजस्थान में माही नदी बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा डूंगरपुर जिलों में से बहने के बाद गुजरात में खम्भात की खाड़ी (अरब सागर) में गिर जाती है।
➯माही नदी राजस्थान में बांसवाड़ा जिले के खांदू गांव में प्रवेश करती है।
➯राजस्थान में माही नदी के प्रवाह क्षेत्र या बहाव क्षेत्र को छप्पन का मैदान कहते है।

👉माही नदी के उपनाम या अन्य नाम-
1. वागड़ की गंगा
2. कांठल की गंगा
3. दक्षिण राजस्थान की स्वर्ण रेखा
4. आदिवासियों की गंगा

👉माही नदी की कुल लम्बाई-
➯भारत में माही नदी की कुल लम्बाई 576 किलोमीटर है।
➯राजस्थान में माही नदी की कुल लम्बाई 171 किलोमीटर है।

👉माही नदी की सहायक नदियां-
1. इरू नदी
2. सोम नदी
3. जाखम नदी
4. अनास नदी
5. हरण नदी
6. चाप नदी
7. मोरेन व भादर नदी
➯माही नदी की सहायक नदियों में इरू नदी माही नदी में माही बांध से पहले मिल जाती है तथा शेष सभी सहायक नदियां माही बांध के बाद इसमें आकर मिलती है।
➯चाप नदी व अनास नदी माही नदी में बायीं तरफ से तथा शेष सहायक नदियां दायीं ओर से मिलती है।

👉कर्क रेखा-
➯माही नदी एकमात्र ऐसी नदी है जो कर्क रेखा को अंर्राष्ट्रीय स्तर पर दो बार काटती है या दो बार पार करती है।

👉डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा-
➯माही नदी राजस्थान के डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा जिलों के बीच से गुजर कर सीमा बनाती है।

👉माही बजाज सागर बांध-
➯माही बजाज सागर बांध राजस्थान का सबसे लम्बा बांध है।
➯माही बजाज सागर बांध माही नदी पर राजस्थान के बांसवाड़ा जिले के बोरखेड़ा गांव में स्थित है।
➯माही बजाज सागर बांध की कुल लम्बाई 3109 मीटर है।
➯माही बजाज सागर बांध से माही बजाज सागर बांध परियोजना निकाली गई है जो की गुजरात तथा राजस्थान के बीच चल रही है।
➯माही बजाज सागर बांध परियोजना से राजस्थान के डूंगरपुर तथा बांसवाड़ा जिले लाभांवित होते है।

👉कागदी पिकअप बांध-
➯कागदी पिकअप बांध माही नदी के उपर बांसवाड़ा जिले में स्थित है।

👉माही साइफन बांध-
➯माही साइफन बांध माही नदी पर डूंगरपुर जिले में स्थित है।
➯माही साइफन बांध से भीखाभाई सागवाड़ा परियोजना निकाली गई है।
➯भीखाभाई सागवाड़ा परियोजना डूंगरपुर जिले में चल रही है।

👉त्रिवेणी संगम-
➯डूंगरपुर जिले की साबला सहसील के नवाटापरा गांव में सोम, माही व जाखम तीनों नदियों का त्रिवेणी संगम स्थित है।

👉बेणेश्वर धाम-
➯सोम, माही व जाखम नदियों के त्रिवेणी संगम पर डूंगरपुर जिले की साबला तहसील के नवाटापरा गांव में ही बेणेश्वर धाम स्थित है।
➯बेणेश्वर धाम पर प्रतिवर्ष संत मावजी की याद में माघ पूर्णिमा के दिन मेला लगता है। 
➯बेणेश्वर धाम को आदिवासियों का कुम्भ तथा बागड़ का पुष्कर कहा जाता है।
➯बेणेश्वर धाम की स्थापना संत मावजी ने की थी।

👉दक्षिणी राजस्थान-
➯माही नदी दक्षिणी राजस्थान की प्रमुख नदी मानी जाती है।

👉गुजरात-
➯माही नदी रामपुरा के पास पंचमहल (गुजरात) नामक स्थान पर गुजरात में प्रवेश करती है।
➯माही नदी पर पंचमहल (रामपुरा, गुजरात) में कडाना बांध बनाया गया है।

👉माही नदी का समापन या मुहाना-
➯माही नदी गुजरात में से बहते हुई अन्त में खंभात की खाड़ी (अरब सागर) में गिर जाती है।



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माही नदी माही नदी Reviewed by asdfasdf on September 21, 2018 Rating: 5
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