संगम का आयोजन


प्रथम संगम: स्थान मदुरा अध्यक्ष ऋषि अगस्त्य संरक्षक 89 पांड्य शासक अवधि 4ए400 वर्ष सदस्य 549 प्रस्तुत रचनायें 4499 मानक ग्रंथ अक्कतियम, परिपदल, मुदुनरै उपलब्ध ग्रन्थ कोई नहीं द्वितीय संगम: स्थान कपाटपुरम् अध्यक्ष तोल्लकापिप्यर संरक्षक 59 पांड्य शासक अवधि 3ए700 वर्ष सदस्य 49 प्रस्तुत रचनायें 3ए700 मानक ग्रंथ तोल्लकाप्पियम, मापुरानम्, भूतपुरोनम, कलि, कुरूक, वेन्दालि, व्यालमलय उपलब्ध ग्रन्थ तोल्लकाप्पियर कृत श्तोल्लकाप्पियमश् जो तमिल भाषा का प्राचीनतम व्याकरण है तृतीय संगम: स्थान मदुरा अध्यक्ष नक्कीरर संरक्षक 49 पांड्य शासक अवधि 1850 वर्ष सदस्य 49 प्रस्तुत रचनायें 449 मानक ग्रंथ पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई, पादिने नकील कनवकु, नेडुण्थोकै, कुरून्थोकै, परिपादल, वरि, वेरिसै, एन्कुरून्नूरू उपलब्ध ग्रन्थ पत्थुप्पस्तु, एतुत्थोकई, पादिने नकील कनवकु तथा अन्य समस् उपलब्ध तमिल ग्रंथ। ۞ चोलों की राजधानी पहले उरैयूर तथा बाद में पुहार (कावेरी पट्टनम) थी। ۞ चोलों का राजकीय चिन्ह बाघ था। ۞ करिकल चोलों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण शासक था जिसका अर्थ होता है श्जले हुए पैर वाला व्यक्तिश् इसने पुहार की स्थापना की तथा कावेरी नदी पर लम्बा बांध बनाया। वह सात स्वरों का ज्ञाता था। ۞ करिकल के पास एक शक्तिशाली नौसेना थी जिसका उपयोग उसने श्रीलंका पर विजय प्राप्त करने के लिए किया। पांड्य: ۞ पांड्य राज्य का सर्वप्रथम उल्लेख पाणिनि के अष्टध्यायी में मिलता है। मेगास्थनीज ने भी कहा है कि इस राज्य पर एक औरत का शासन था और यह राज्य मोतियों के लिए प्रसि) था। ۞ पांड्य राज्य की राजधानी मदुरा थी तथा इसका राजचिन्ह मछली (मत्स्य) था। ۞ पांड्य राज्य मदुरर्ह, रामनाथपुरम, तिरूनेलवेलि, तिरूचिरापल्ली एवं ट्रावनकोर तक विस्तृत था। ۞ नेडियोन पांड्य राजवंश का प्रथम शासक था। नेडियोन का शाब्दिक अर्थ श्लम्बा आदमीश् होता है। इसने समुद्र की पूजा प्रारम्भ कराई थी। ۞ नेडियोन के पश्चात मुदुकुडुमी शासक बना। इसने श्पालशालेश् (यज्ञशालाएं बनवाने वाला) की उपाधि धारण की। ۞ पांड्य राजा ने रोमन सम्राट आगस्टस के दरबार में अपने राजदूत भेजे थे। शासन व्यवस्था: ۞ संगमकालीन शासन व्यवस्था में वंशानुगत राजतंत्रा की प्रथा प्रचलित थी। राजा प्रशासन का मुख्य केन्द्र बिन्दु होता था। राजा का आचरण अनुकरणीय माना जाता था। उसके लिए कला, साहित्य तथा धर्म का संरक्षक होना अपेक्षित गुण था। उसकी निरंकुशता र विवेकपूर्ण मंत्रियों, कवियों अथवा मित्रों का अवसर आने पर हल्का अंकुश रहता था। ۞ राजा अपनी सभा श्नालवैश् में प्रजा की कठिनाइयों पर विचार करता था। ۞ श्मनरमश् सर्वोच्च न्यायालय होता था जिसका सर्वोच्च न्यायाधीश राजा होता था। ۞ राजा की मदद करने के लिए विशाल अधिकारी वर्ग था जिनमे अमैच्चार (मंत्रीद्धए पुरोहित (पुरोहितारद्धए सेनापत्तियार (सेनानायकद्धए दूतार (राजदूत या दूत) तथा और्रार (गुप्तचर) प्रमुख थे। ۞ राजा के आवास पर सशस्त्रा महिलाएं रक्षक के रूप में रहती थीं। ۞ सेना के कप्तान की उपाधि श्एनाडीश् थी। युद्धमें मृत सैनिकों की पत्थर की मूर्तियां बनाई जाती थी। ۞ प्रशासनिक सुविधा के लिए राज्य मंडलम, नाडु तथा उर में विभाजित था। ۞ बड़े गांव को श्पेरूरश् तथा छोटे गांव को श्सिरूरश् कहा जाता था। आर्थिक स्थिति: ۞ तमिल प्रदेश अपनी उर्वरता के लिए प्रसि) था। कावेरी डेल्टा बहुत उपजाऊ था। कृषि आर्थिक व्यवस्था का मुख्य आधार थी तथा यह राजकीय आय का मुख्य स्रोत था। यहां धान, रागी तथा गन्ने की खेती होती थी। इसके अतिरिक्त अन्य अनाज, फल, गोलमिर्च और हल्दी का पैदावार होता था। ۞ श्कुरिंजीश् पर्वत क्षेत्रा था तथा श्मूलैयश् जंगल को कहा जाता था। श्पालैश् निर्जन स्थल तथा कृषयोग्य भूमि को श्मरुदमश् का जाता था। समुद्रतट को श्नेयत्तलश् कहा जाता था। ۞ भूमि की पैमाइश के लिए श्माश् और श्वेलिश् पैमानो का प्रयोग होता था। ۞ राज्य की आय के मुख्य साधन कृषि तथा व्यापार पर लगाये जाने वाले कर थे। ۞ श्करईश् कृषिकर था तथा श्हरईश् लूट के माल को कहा जाता था। श्उल्गुश् सीमाशुल्क था। ۞ धनी किसानों को श्वेल्लालश् कहा जाता था तथा श्कडैसियरश् कृषि कार्य करने वाला निम्नतम वर्ग था। ۞ श्अवनमश् संगम काल में बाजार को कहते थे तथा व्यापारी वर्ग को श्वेनिगरश् कहा गया है। ۞ संगमकाल के व्यावसायिक वर्ग में पुलैयन (रस्सी बनाने वालाद्धए एनियर (कशिकारीद्धए मछुआरे, कुम्हार, लुहार, स्वर्णकार तथा बढ़ई प्रमुख थे। श्मलवरश् तमिल प्रदेश की उत्तरी सीमा पर बसने वाले लोग थे जिनका पेशा डाका डालना था। ۞ श्अरिकामेडुश् एक प्रसि) व्यापारिक केन्द्र था जहां से वस्तुएं भारत के विभिन्न भागों में भेजी जाती थीं। ۞ तमिल प्रदेश में गोलमिर्च का अत्यधिक उत्पादन होता था जिसे श्यवनप्रियश् कहा गया है। ۞ एरिथ्रियन सी में नौरा, तोंडी, मुशिरी और नेसिल्संडा पश्चिमी तट के प्रमुख बंदरगाहर बताए गये हैं। ۞ पुहार चोल का, शालियूर पांड्य का तथा बंदर चेर राज्य का महत्वपूर्ण बंदरगाह था। ۞ उरैयूर सूती कपड़ों के व्यापार के लिए प्रसि) था। ۞ निर्यात की मुख्य वस्तु काली मिर्च, हाथी दांत, मोती, मलमल, रेशमी कपड़े, कीमती रत्न तथा कीमती पत्थर थ तथा आयात की मुख्य वसतु कांच, प्रवाल, मूंगा, शराब, सोना, सिक्का आदि था। ۞ संगमकाल में सर्वाधिक व्यापार रोमन राज्य के साथ था। रोमन सम्राट आॅगस्टस के सोने के सिक्के मुजीरिस, पुहार एवं अरिकामेडु से मिले हैं। मूजीरिस में आॅगस्टस का मंदिर रोमनों द्वारा बनवाया गया था। सामाजिक स्थिति: ۞ संगमकालीन सामाजिक स्थिति की प्रमुख विशेषता उत्तर भारत तथा दक्षिण भारत की स्थानीय संस्कृति के बीच समन्वय हैं समाज अनेक वर्गों में विभक्त था। जाति विभाजन और जनजातीय व्यवस्था साथ-साथ विद्यमान था। ۞ शासकों की एक अलग जाति होती थी जिसे श्अरसरश् कहा जाता था। ۞ ब्राह्मणों को पुरोहितों तथा कवियों के रूप में राज्य से संरक्षण मिलता था तथा इस काल में वे मांस एवं मदिरा का सेवन करने लगे थे। ۞ वेल्लाल जो धनी किसानों का वर्ग था का काफी महत्व था राजघरानों से उनका वैवाहिक संबंध होता था तथा वे राज-कर्मचारी के रूप में नियुक्त किये जाते थे। ۞ तमिल देशों में प्रचलित स्त्राी तथा पुरुष के सहज प्रणय तथा उससे संबंधित अभिव्यक्तियों को श्पांच तिणैश् कहा जाता था। सती प्रथा का प्रचलन था। ۞ श्परत्तियरश् व श्कणिगैचरश् का संगमकालीन समाज में गणिकाओं एवं नर्तकियों के रूप में उल्लेख मिलता है।
संगम का आयोजन संगम का आयोजन Reviewed by asdfasdf on October 27, 2018 Rating: 5

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