गुपत की उत्पत्ति


गुपत की उत्पत्ति ۞ गुप्त सम्भवतः कुषाणों के सामन्त थे और थोड़े ही दिनों में उनके उत्तराधिकारी बन बैठे। वे अपनी सत्ता के केन्द्र प्रयाग को बनाकर पड़ोस के इलाकों में फैलते गये। गुप्त शासकों ने अपना अधिपत्य मध्य गंगा मैदान, प्रयाग, साकेत और मगध पर स्थापित किया। ۞ काध्शी प्रसाद जायसवाल के अनुसार गुप् सम्राट जाट और मूलतः पंजाब के निवासी थे। गौरी शंकर ओझा इन्हें क्षत्रिय तथा राय चैधरी ने ब्राह्मण माना। स्मृतियों में गुप्तों को वैश्य कहा गया है। ۞ गुप्तकालीन अभिलेखों के आधार श्श्री गुप्तश् गुप्तों के आदिराजा थे। इन्होंने 240 ई. में से 280 ई. तक शासन किया तथा श्महाराजश् की उपाधि धारण की। श्रीगुप्त के पश्चात उसका पुत्रा घटोत्कच शासक हुआ जिसने 280 ई. से 319 ई. तक शासन किया। चन्द्रगुप्त प्रथम (319.335 ई.) रू ۞ चन्द्रगुप्त प्रथम गुप्तवंश का प्रथम प्रसि) राजा हुआ। इसने श्महाराजाधिराजश् की उपाधि धारण कीं चन्द्रगुप्त ने वैशाली के प्राचीन लिच्छवि वंश की राजकुमारी कुमारदेवी के साथ विवाह किया। इन्होंने अपने राज्यारोहण की स्मृति में 319.320 ई. में गुप्त संवत आरम्भ किया। समुद्रगुप्त (335.375 ई.) रू ۞ चन्द्रगुप्त के पश्चात् उसका पुत्रा समुद्रगुप्त शासक बना। समुद्रगुप्त के दरबारी कवि हरिषेण द्वारा रचित प्रयाग प्रशास्ति लेख में समुद्रगुप्त के शासन पर खुदा है जिस पर अशोक का स्तम्भ काल से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकाीर मिलती है। यह अभिलेख उसी स्तम्भ लेख है। प्रयाग स्तम्भ लेख के सातवें श्लोक से उसकी सामरिक विजयों का वण्रन मिलता है। समुद्रगुप्त द्वारा विजित प्रदेशों को पांच समूहों में बांटा गया। प्रथम समूह में गंगा-यमुना दोआब के वे राजा हैं जिन्हें हराकर उनका राज्य साम्राज्य में मिला लिया गया। द्वितीय समूह में पूर्वी हिमालय के राज्यों और कुछ सीमावर्ती राज्यों के शासक हैं जैो-ेनपाल, असम, बंगाल, पंजाब के कुछ पूर्वी गणराज्य आदि। इन्हें उसने अपनी शक्ति का अहसास करा दिया। तृतीय समूह में आटविक राज्य हैजो विन्ध्य क्षेत्रा में पड़ते हैं। चतुर्थ समूह में पूर्वी दक्कन और दक्षिण भारत के 12 शासक थे जिन्हें हराकर छोड़ दिया गया। पंचम समूह में शकों और कुषाणों के नाम है। ۞ समुद्रगुप्त को श्भारत का नेपोलियनश् कहा जाता है। ۞ प्रयाग प्रशस्ति संस्कृत के चम्पू शैली (प्रारम्भिक पंक्ति पद्यात्मक तथा बाद वाली गद्यात्मक) में है। इसमें समुद्रगुप्त के अतिरिक्त अशोक, जहांगीर तथा बीरबल का उल्लेख है। ۞ समुद्रगुप्त द्वारा जारी किये गये सिक्के में कुछ पर श्अश्वमेध पराक्रमश् खुदा है तो कुछ पर सम्राट को वीणा वादन करते हुए दिखाया गया है। ۞ चीनी स्रोत के अनुसार श्रीलंका के शासक मेघवर्मन ने समुद्रगुप्त से गया में बौद्धमठ बनाने की अनुमति मांगी। समुद्रगुप्त अपने को श्लिच्छवि दौहितश् कहकर गर्व का अनुभव करता था। चन्द्रगुप्त (380.412 ई.) रू ۞ समुद्र गुप्त के पश्चात् उसका पुत्रा चन्द्रगुप्त द्वितीय राजा बना। उसका दूसरा नाम देवराज तथा देवगुप्त भी था। उसने अपने साम्राज्य को विवाह संबंधों और विजयों द्वारा बढ़ाया। उसने नागवंश की राजकुमारी कुबेर नागा से विवाह किया। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय ने अपनी पुत्राी प्रभावती गुप्त का विवाह वाकाटक नरेश रुद्रसेन से किया। रुद्रसेन की मृत्यु के बाद वहां के शासन के निमित्त उसने उज्जैन को अपनी दूसरी राजधानी बनाया। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय ने शकों को पराजित कर श्विक्रमादित्यश् की उपाधि धारण की। शक के विरु) विजय के लक्ष्य में उसने चांदी के सिक्के जारी किये। दिल्ली के महरौली लौह स्तम्भ अभिलेख के राजा चन्द्र का साम्य चन्द्रगुप्त द्वितीय के साथ मिलाया जाता है। ۞ चन्द्रगुप्त द्वितीय के दरबार में कालिदास और अमरसिंह जैसे अनेक विद्वान थे। फाहियान (399.414 ई.) इसी के शासनकाल में भारत आया था। कुमारगुप्त (415.454 ई.) रू ۞ ह्नेनसांग ने कुमारगुप्त का नाम श्शक्रादित्यश् बताया है। इसने बड़ी संख्या में मुद्रायें जारी करवायी। इसके द्वारा जारी की गयी मुद्राओं का एग बड़ा भंडार (भरतपुर) में मिला जिसमें चांदी की मयूरशैली की मुद्राएं सर्वोत्कृष्ट थीं। ۞ स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख से ज्ञात होता है कि पुस्यभूतियों का आक्रमण कुमारगुप्त के समय हुआ। ۞ कुमारगुप्त ने एक अश्वमेध यज्ञ किया था। ۞ नालन्दा विश्वविद्यालय का संस्थापक कुमारगुप्त था। स्कंदगुत्प (455.468 ई.) रू ۞ राज्यारोहण के तुरन्त बाद इसे हुणों के आक्रमण का सामाना करना पड़ा। स्कंदगुप्त के भीतरी स्तम्भ लेख तथा जूनागढ़ शिलालेख में हुणों पर स्कंदगुप्त की विजयों का उल्लेख है।
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