जैन धर्म | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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👉जैन शब्द का अर्थ- ➯जैन शब्द की उत्पती संस्कृत भाषा की जिन शब्द से हुई है। तथा जिन शब्द का अर्थ विजेता है। जिन शब्द जि धातु से बना है अर्थात् जिन्होंने अपने मन, वाणी और अपनी काया को जीत लिया हो वे जिन कहलाते है। 👉तीर्थंकर- ➯तीर्थंकर का अर्थ है तीर्थ की रचना करने वाला। ➯संसार सागर से मोक्ष तक के तीर्थ की रचना करने वाला तीर्थंकर कहलाता है। ➯जैन धर्म के भक्त कुल 24 तीर्थंकरों को देवताओं के रूप में पूजते है। 👉ऋषभदेव या अादिनाथ- ➯जैन धर्म की स्थापना ऋषभदेव के द्वारा की गई थी इसीलिए ऋषभदेव को जैन धर्म का संस्थापक भी कहते है। ➯ऋषभदेव जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर है। ➯ऋषभदेव को आदिनाथ, ऋषभनाथ, वृषभनाथ आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। ➯राजस्थान में ऋषभदेव को केसरियानाथ के नाम से जाना जाता है। ➯सांड/बुल भगवान ऋषभदेव का प्रतिक चिह्न है। ➯ऋषभदेव के पुत्र का नाम बाहुबली था। 👉बाहुबली- ➯बाहुबली भगवान ऋषभदेव के पुत्र थे। ➯बाहुबली की मूर्ति को बाहुबली की मूर्ती या गोमतेश्वर की मूर्ति भी कहते है। ➯बाहुबली की मूर्ति कर्नाटक की श्रवणबेलगोल नामक जगह पर स्थित है। ➯बाहुबली की मूर्ति का निर्माण गांगेय वंश के सम्राट गंगराज श्री रच्चमल के सेनापति (महामात्य) चामुंडराय ने करवाया था 👉अजितनाथ- ➯अजितनाथ जैन धर्म के दूसरे तीर्थंकर है। ➯हाथि जैन धर्म के तीर्थंकर अजितनाथ का प्रतिक चिह्न है। 👉पार्श्वनाथ- ➯पार्श्वनाथ जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर है। ➯सर्प जैन धर्म के 23वें तीर्थंकर पार्श्वनाथ का प्रतिक चिह्न है। ➯पार्श्वनाथ को जैन धर्म का ऐतिहासिक संस्थापक कहा जाता है। ➯जैन धर्म के ग्रंथों में पार्श्वनाथ का नाम 'निगंठनाथ' है। ➯पार्श्वनाथ का जन्म उत्तर प्रदेश की वाराणसी नामक जगह पर हुआ था। ➯पार्श्वनाथ के शिष्यों को निर्ग्रन्थ कहा जाता है ➯पार्श्वनाथ को पारसनाथ जिन के नाम से भी जाना जाता है। 👉महावीर स्वामी- ➯महावीर स्वामी जैन धर्म के 24वें तथा अंतिम तीर्थंकर है। ➯महावीर स्वामी को जैन धर्म का वास्तविक संस्थापक भी कहा जाता है। ➯सिंह महावीर स्वामी का प्रतिक चिह्न है। ➯महावीर स्वामी का जन्म 599 ई.पू. में उत्तर प्रदेश के वैशाली जिले के कुण्डग्राम या कुण्डलपुर में हुआ था। ➯महावीर स्वामी के पिता का नाम राजा सिद्धार्थ व माता का नाम त्रिशला था। ➯महावीर स्वामी की पत्नी का नाम यशोदा था। ➯महावीर स्वामी की पुत्री का नाम प्रियदर्शिनी या अन्नोजा था। ➯महावीर स्वामी का जन्म जांत्रिक गोत्र में हुआ था इसीलिए महावीर स्वामी का गोत्र जांत्रिक है। ➯महावीर स्वामी को वर्धमान, आदिनाथ, अर्हत, जिन, निर्ग्रथ तथा अतिवीर आदि अन्य नामों से भी जाना जाता है। 👉कैवल्य या कैवलिन- ➯12 वर्ष 6.5 माह (लगभग 12 वर्ष) की तपस्या करने के बाद महावीर स्वामी को जम्भियग्राम नामक जगह पर ऋजुपालिका या ऋजुबालुका नदी के किनारे साल वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था ज्ञान प्राप्त करने की इस घटना को जैन धर्म में कैवल्य या कैवलिन कहते है। अर्थात् कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। ➯30 की आयु में महावीर स्वामी ने अपने बड़े भाई नंदिवर्धन की आज्ञा से गृह-त्याग किया था। 👉मेघकुमार- ➯महावीर स्वामी ने अपना पहला उपदेश बिहार की राजगृह नामक जगह की पितुलाचल पहाड़ी पर मेघकुमार को सुनाया था। ➯महावीर स्वामी ने अपने उपदेश अर्धमागधी भाषा में दिये थे। ➯जैन धर्म के ग्रंथों को भी अर्धमागधी भाषा में लिखा गया था इन ग्रथों को बाद में प्राकृत भाषा में लिखा गया था। 👉जमाली- ➯महावीर स्वामी का प्रथम शिष्य जमाली था। ➯जमाली रिश्ते में महावीर स्वामी का दामाद था। 👉पावापुरी (बिहार)- ➯महावीर स्वामी को 72 वर्ष की आयु में 527 ई.पू. में बिहार के नालंदा जिले की पावापुरी नामक जगह पर मृत्यु या मोक्ष प्राप्त हुआ। ➯भारत में जैन धर्म का सबसे पवित्र स्थल पावापुरी को माना जाता है। 👉जैन धर्म के 24 तीर्थंकर क्रमशः-
👉गणधर- ➯महावीर स्वामी के शिष्यों को गणधर कहा जाता था। ➯महावीर स्वामी के कुल 11 शिष्य या गणधर थे। ➯सुधर्मन महावीर स्वामी का एकमात्र ऐसा शिष्य या गणधर था जो की महावीर स्वामी की मृत्यु के बाद जीवित बचा था। ➯सुधर्मन ने जैन धर्म का प्रचार प्रासर भी किया था। 👉आगम- ➯आगम जैन धर्म के साहित्य या ग्रंथ है। जिन्हें अंग के नाम से भी जाना जाता है। ➯जैन धर्म में कुल 12 आगम या अंग है। ➯अागम साहित्यों की रचना देवर्धिगणि क्षमाश्रमण ने की थी। 👉पूर्व- ➯पूर्व भी जैन धर्म के ग्रंथ है। ➯पूर्व जैन ग्रथों में तीर्थंकरों के सिद्धांतों का वर्णन है। 👉कल्पसूत्र- ➯कल्पसूत्र जैन धर्म के पवित्र ग्रंथ माने जाते है। ➯कल्पसूत्र जैन ग्रंथों में जैन तीर्थंकरों की जीवनी लिखी हुई है। ➯कल्पसूत्र की रचना प्रसिद्ध जैन मुनि भद्रबाहु ने की थी। 👉भगवती सूत्र- ➯भगवती सूत्र नामक जैन ग्रंथ में 16 महाजनपदों या राज्यों का वर्णन मिलता है। 👉जैन धर्म की प्रमुख सभा/ समिति/ संगीतियां- ➯जैन धर्म में कुल 2 सभाएं हुई थी। जैसे- (1.) प्रथम जैन संगीति/ सभा/ समिति- ➯प्रथम संगीति 322 ई.पू. में पाटलिपुत्र (वर्तमान पटना) में हुई थी। ➯प्रथम संगीति का अध्यक्ष स्थूलभद्र को बनाया गया था। ➯प्रथम सभा के समय पाटलिपुत्र का शासक चन्द्रगुप्त मौर्य था। ➯जैन धर्म प्रथम सभा में ही दो भागों में विभाजित हो गया था जैसे- (अ) श्वेताम्बर शाखा (ब) दिगम्बर शाखा (अ) श्वेताम्बर शाखा- ➯श्वेताम्बर शाखा की स्थापना स्थूलभद्र ने की थी। ➯श्वेताम्बर शाखा को मानने वाले जैन धर्म के गुरु हमेशा सफेद कपड़े पहनते है। (ब) दिगम्बर शाखा- ➯दिगम्बर शाखा की स्थापना भद्रबाहु ने की थी। ➯दिगम्बर शाखा को मानने वाले जैन धर्म के गुरु नग्न अवस्था में रहते है। (2.) द्वितीय जैन संगीति/ सभा/ समिति- ➯द्वितीय जैन सभा 512 ई. में गुजरात की वल्लभी नामक जगह पर हुई थी। ➯द्वितीय जैन सभा का अध्यक्ष देवर्धिगण क्षमाश्रमण को बनाया गया था। ➯इस सभा में जैन धर्म के ग्रंथों को अंतिम रूप से संकलित कर लिपिबद्ध किया गया था। | ||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||||
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जैन धर्म (जैन धर्म का इतिहास)
Reviewed by asdfasdf
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August 24, 2018
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